न्याय धर्म सत्य
संकल्प प्रमाणित होने का गवाही है।
चिंतन चित्रण का प्रष्ठ्भूमि है।
संकल्प प्रमाणित होने के लिए पुडिया है! उसके लिए चिंतन एक आवश्यक प्रक्रिया है। ताकि वृत्ति तृप्त हो सके - कि यही न्याय है! यही धर्म है! यही सत्य है! यह होने कि लिए अनुभव आवश्यक रहा।
इस तरह अनुभव मूलक विधि से सत्य तुलन में घंटी बजाने लगा! धर्म घंटी बजाने लगा! न्याय घंटी बजाने लगा! फलस्वरूप संवेदना से जो इन्फोर्मेशन मिली वह इसमें नियंत्रित हो गयी। अपने आप! इसमें कोई बल, पैसा, या रूलिंग लगाने की जरूरत नहीं है। स्वाभाविक रुप में यह हो जाता है। इस प्रकार विचार में न्याय-धर्म-सत्य समाहित हो जाता है।
इन विचारों के आधार पर मन में मूल्य जो स्पष्ट हुए - उनका आस्वादन मन में हुआ। मन में हुए इस आस्वादन के अनुसार चयन करने लगे तो हम जीने में प्रमाणित होने लगे! प्रमाणित करने के लिए एक तरफ बुद्धि में संकल्प, और दूसरी तरफ मन में चयन। ये दोनों मिलकर प्रमाण परंपरा बन गयी।
शिक्षा विधि से अध्ययन
अध्ययन विधि से बोध
बोध विधि से अनुभव
अनुभव विधि से प्रमाण
प्रमाण विधि से प्रमाण-बोध का संकल्प
प्रमाण-बोध के संकल्प से चिंतन और चित्रण
चिंतन और चित्रण से तुलन और विश्लेषण
तुलन और विश्लेषण के आधार पर मूल्यों का आस्वादन - और उसी के लिए चयन
- श्री नागराज शर्मा के साथ संवाद पर आधारित ( अगस्त २००६, अमरकंटक)
No comments:
Post a Comment